Places Of Worship Act 1991 लागू करने के पीछे तब की सरकार का ये मत था की लोग पुराने मंदिरो को पाने के लिए बार बार कोर्ट में न जाए। अर्थात 1947 के बाद जिन मंदिरो, पूजा स्थलों की जैसी स्थिति है उनको वैसी ही स्थिति में रखा जाए। यह एक्ट बाबरी मस्जिद (वर्ष 1992) के विध्वंस से एक वर्ष पहले सितम्बर 1991 में पारित किया गया था।
1947 बटवारे के समय दुनियाँ ने गंगा जमुनी तहजीब का सबसे बढियाँ उदाहरण देखा था। जो की सिर्फ राजनितिक फायदे और नफरती सोच के आगे झुकने के लिए किया गया सौदा था।
राजनितिक फायदा किसका था? -
हिन्दू होने के नाते में इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता क्युकी मेने फेसबुक के ग्रुप जो दलित, टीचर, IAS और किसान नाम से हज़ारो की संख्या में बनाये गए है उसमे लोगो की कमेंट को देखकर पता चला की हिन्दू डरपोक होते है। इसलिए डरपोक होकर में नहीं बता सकता है की 1947 के बटवारे में किसे राजनितिक फायदा हुआ। हालाँकि आपको ऐसी फोटो मिल जाएगी जब हमारे पूर्वज खेत में गेहूं की बाली बीनकर और उसको कूटकर पेट भरते थे तब कुछ राजनीतिक परिवार आसमान अर्थात प्लेन में जन्म दिन मनाते थे।
नफरती सोच कौन है?
अगर आप RSS के बारे में सोच रहे है तो आपको बता दूँ 1947 से पहले RSS नाम का संगठन नहीं बना था। लेकिन तब भी केरल के मालाबार, खिलाफत आंदोलन इत्यादि में हिन्दुओं दलितों के शहर और गांव के गांव जला दिए गए, लूट लिए गए . ये में नहीं कह रहा वीर सावरकर की किताब "मोपाला" - अर्थात मुझे इससे क्या में सब वृतांत मिलते है। इसलिए आज भी लोग वीर सावरकर के नाम की खेती करते है ताकि कोई उनकी किताब न पढ़ ले। लेकिन एक सत्य ये भी है की कुछ क्रांतिकारियों का जन्म उनकी किताबो के कारण ही हुआ था।
लेकिन तभी गंगा जमुनी नफरत इतनी बढ़ गयी की इन्होने कहाँ की वे अब हिंदुस्तान में नहीं रह सकते, उन्हें अपने लिए अलग जमीन चाहिए। और उन्होंने पाकिस्तान के नाम का बटवारा भी करवा लिया।
1991 में उसी डर का इस्तेमाल किया गया और कहा गया की यहाँ फिर से दंगे हो जायेगे और उस डर को दिखाकर Places Of Worship Act 1991 लाया गया ये उनके कहने पर लाया गया जो हिंदुस्तान में हिंदुस्तान के लोगो पर अहसान करके यहाँ रुक गए थे जो आज सोशल मीडिया पर आज भी ट्रेंड चलाते है की हिंदुस्तान किसी के बाप का नहीं है। और ये कहते-कहते RSS, बीजेपी और हिन्दुओ को तमाम गालियों से अलंकृत करते है।
बटवारा होने के बाद भी देश में दंगे होते है तो फायदा क्या 1947 के बटवारे का, UN को इस बटवारे को ख़त्म करना चाहिए । देश की सरकार देश की जनता द्वारा चुनी जाती है लेकिन इन्होने तो Places Of Worship Act 1991 लाकर अन्याय कर दिया। अन्याय उन हिन्दू दलितों के साथ भी है जो करोड़ो की संख्या में पाकिस्तान में मारे और लूटे जा रहे है। और बंगाल, केरल, झारखण्ड, राजस्थान और बिहार इत्यादि बॅटवारे हो चुके भारत में आज 2022 में भी वैसा ही कुछ सुनने को मिलता रहता है। कही पाकिस्तानी झंडा लग जाता है जैसे बिहार , कही हिन्दू दलित लड़की उठा ली जाती है जैसे झारखण्ड और up । तो कही हिन्दू अपना त्यौहार भी नहीं माना सकते वहां धारा लगा देते है जैसे राजस्थान।
अगर एक डरपोक हिन्दू होने के नाते ये मान भी लू की मुझ डरपोक को दंगो से बचाने के लिए Places Of Worship Act 1991 लाया गया तो फिर वक्फ बोर्ड की क्या जरुरत थी जिसके खिलाफ कोई कोर्ट भी नहीं जा सकता। वक्फ बोर्ड अगर कोई जमीन दान दे दे तो उससे कोई वापस नहीं ले सकता, यह उस बटवारे में बची जमीन पर ये हाल है । पाकिस्तान बटवारे के रूप ले लिया तो वक्फबोर्ड भारत में हिन्दुओ, सिख्खो आदि बचे हुए धर्मो की जमीन पर क्यों मालिक बन रहा है? सॉरी ! सबसे ज्यादा हिंदुस्तान में जमीन वक्फ बोर्ड के पास है। मालिक हिंदुस्तान का शायद बन चूका है। ऐसा कहु तो गलत नहीं होगा।
तो दूसरी तरफ सरकारों को हिन्दुओं के मंदिर की जमीन भी चाहिए। दान पेटी का पैसा तो सारा ले ही लेते हो। लेकिन Places Of Worship Act के बाद तो अन्याय शब्द भी छोटा पड़ गया । क्युकी इस एक्ट से बटवारे में प्राप्त जमीन पर अपने मंदिरो के लिए हिन्दू कोर्ट भी नहीं जा सकेगा। तो अब कहाँ जायेगा।
नोट - यह व्यंगात्मक ब्लॉग मात्र है। कोई न्यूज़ या खबर नहीं। एक डरा हुआ हिन्दू सच नहीं बोल सकता। प्राइवेट न्यूज़ चैनल देखकर जो धारणा बनी उसे ब्लॉग के द्वारा बताया है। क्युकी मीडिया में सेक्युलर बनने की होड़ लगी है। इसके लिए वो सत्य और न्याय को जूती से दवाकर सिर्फ खबर बताते है खबर के पीछे का सच न ढूढते और न बताते है। कभी कभी पीछे के सच के नाम पर मनगढंत कहानी बोलते है। वे स्वार्थ के गुलाम है क्योंकि कंपनी चलाते हैं
कुछ प्रश्न उत्तर -
Worship act 1991 in Hindi में क्या है?
Worship act 1991 स्वतंत्रता के बाद किसी भी धार्मिक स्थल की मौजूदा स्थिति (Conversion of Religious Places) को बदलने पर रोक लगाता है यहाँ तक की कोई भी कोर्ट तक नहीं जा सकता।
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 कब लागू किया था?
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 बाबरी मस्जिद (वर्ष 1992) के विध्वंस से एक वर्ष पहले सितम्बर 1991 में पारित किया गया था।
आर्टिकल 1991 क्या है?
15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता।
पूजा स्थल अधिनियम कब आया?
राम मंदिर आंदोलन अपने चरम सीमा पर था। इस आंदोलन का प्रभाव देश के अन्य मंदिरों और मस्जिदों पर भी पड़ा, क्युकी हिन्दुओं को पता चला उनके ज्यादातर सभी बड़े मंदिर पर कब्ज़ा है। इस पर विराम लगाने के लिए ही उस वक्त की नरसिम्हा राव सरकार ये कानून लेकर आई थी।
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 किसने लागू किया था?
कांग्रेस सरकार के शासन में नरसिम्हा राव सरकार, मणिशंकर अय्यर और बाबरी मस्जिद के कुछ चहेतो के कहने पर ये कानून बना था